भाषा एवं साहित्य >> मणिपुरी लोक कथा संसार मणिपुरी लोक कथा संसारदेवराज
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मणिपुरी लोक कथा संसार
मणिपुरी कविता : मेरी दृष्टि में
वास्तव में किसी भी कौम की राष्ट्रीयता के निर्माण की तमाम वैचारिक जद्दोजहद उसकी कविता में सुरक्षित होती है। कविता के माध्यम से किसी समाज को जितना समझा जा सकता है उतना अन्य किसी माध्यम से नहीं। लेखक ने इस उक्ति को चरितार्थ करते हुए मणिपुरी कविताओं के अध्ययन के क्रम में वहाँ भी ऐतिहासिक, राजनीतिक और सामाजिक परिस्थितियों पर व्यापक रूप से प्रकाश डाला है।
डॉ. देवराज पिछले बास वर्षों से मणिपुर में रहकर वहाँ के साहित्य तथा संस्कृति के अध्येता के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। इस पुस्तक में उन्होंने मणिपुरी कविता के इतिहास के साथ-साथ वहाँ की लोक-संस्कृति और परम्पराओं का भी गहराई से विवेचन किया है। यह देखना रोचक है कि एक कबीलाई समाज के आधुनिक समाज में रूपांतरण की गाथा किस प्रकार उसकी कविताओं में सुरक्षित है।
केवल कविता के अध्येताओं के लिए ही, पूर्वांचल के समाज तथा संस्कृति में रूचि रखने वासे प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी दस्तावेजी महत्व वाली यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।
डॉ. देवराज पिछले बास वर्षों से मणिपुर में रहकर वहाँ के साहित्य तथा संस्कृति के अध्येता के रूप में अपनी विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। इस पुस्तक में उन्होंने मणिपुरी कविता के इतिहास के साथ-साथ वहाँ की लोक-संस्कृति और परम्पराओं का भी गहराई से विवेचन किया है। यह देखना रोचक है कि एक कबीलाई समाज के आधुनिक समाज में रूपांतरण की गाथा किस प्रकार उसकी कविताओं में सुरक्षित है।
केवल कविता के अध्येताओं के लिए ही, पूर्वांचल के समाज तथा संस्कृति में रूचि रखने वासे प्रबुद्ध पाठकों के लिए भी दस्तावेजी महत्व वाली यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी।
मदन कश्यप
हिन्दी में मणिपुरी कविता के इतिहास एवं आलोचनात्मक अध्ययन पर केन्द्रित यह प्रथम कृति है। प्रो. देवराज पिछले दो दशकों से मणिपुर में कार्यरत हैं और वहाँ हिन्दी प्रचार-प्रसार आन्दोलन तथा मणिपुरी साहित्य से निकट से जुड़े हैं। उनके प्रयास से विपुल परिमाण में मणिपुरी साहित्य हिन्दी में आ चुका है और हिन्दी की अनेक कृतियाँ मणिपुरीभाषी पाठकों को उपलब्ध हो चुकी हैं। स्वाभाविक रूप से मणिपुरी साहित्य के विविध पक्षों के सम्बन्ध में उनकी दृष्टि अधइक पैनी और तटस्थ है।
हिन्दी में भारतीय भाषाओं के साहित्य सम्बन्धी आलोचना तथा इतिहास ग्रन्थों की कमी नहीं है, किन्तु यह कृति कुछ अलग हटकर एक समर्थ भारतीय भाषा के काव्य का मूल्यांकन करते समय अन्य भारतीय भाषाओं और कुछ भारतेत्तर भाषाओं के साहित्य को भी ध्यान में रचाती है। इससे अन्य भाषाओं के बीच मणिपुरी भाषा और उसके साहित्य का वास्तविक महत्व रेखांकित हो जाता है। यह वैशिष्ट्य इस पुस्तक को साहित्य के अध्ययन की परम्परा में अभिनव स्थान प्रदान करता है।
लेखक ने इसे इतिहास-ग्रन्थ नहीं कहा है, फिर भी पाठक इसकी सहायता से मणिपुरी कविता के इतिहास की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ग्रन्थ का दूसरा खण्ड मणिपुरी भाषा में अनूदित-प्रकाशित होकर व्यापक स्वाकृति और प्रशंसा प्राप्त कर चुका है। यह इस खण्ड की प्रामाणिकता के लिए पर्याप्त है। अभिव्यक्ति में निजता और लालित्य के कारण समग्र सामग्री कथा-साहित्य की सी रोचकता से परिपूर्ण है।
हिन्दी में भारतीय भाषाओं के साहित्य सम्बन्धी आलोचना तथा इतिहास ग्रन्थों की कमी नहीं है, किन्तु यह कृति कुछ अलग हटकर एक समर्थ भारतीय भाषा के काव्य का मूल्यांकन करते समय अन्य भारतीय भाषाओं और कुछ भारतेत्तर भाषाओं के साहित्य को भी ध्यान में रचाती है। इससे अन्य भाषाओं के बीच मणिपुरी भाषा और उसके साहित्य का वास्तविक महत्व रेखांकित हो जाता है। यह वैशिष्ट्य इस पुस्तक को साहित्य के अध्ययन की परम्परा में अभिनव स्थान प्रदान करता है।
लेखक ने इसे इतिहास-ग्रन्थ नहीं कहा है, फिर भी पाठक इसकी सहायता से मणिपुरी कविता के इतिहास की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। ग्रन्थ का दूसरा खण्ड मणिपुरी भाषा में अनूदित-प्रकाशित होकर व्यापक स्वाकृति और प्रशंसा प्राप्त कर चुका है। यह इस खण्ड की प्रामाणिकता के लिए पर्याप्त है। अभिव्यक्ति में निजता और लालित्य के कारण समग्र सामग्री कथा-साहित्य की सी रोचकता से परिपूर्ण है।
प्रो. ऋषभदेव शर्मा
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